
मध्यप्रदेश के शिक्षा विभाग ने साबित कर दिया है कि दीवारें नहीं, पेंट के बहाने पैसे उड़ाए जाते हैं। शहडोल ज़िले के स्कूलों में रंगाई-पुताई के नाम पर जो बवाल मचाया गया है, उसने सरकारी खर्च के रंग-ढंग ही बदल दिए हैं।
4 लीटर पेंट = 168 मजदूर + 65 मिस्त्री = ₹1 लाख+ मजदूरी!
ब्यौहारी विकासखंड के हाईस्कूल सकंदी में सिर्फ 4 लीटर आयल पेंट खरीदा गया, जिसकी कीमत बताई गई ₹784। लेकिन मजे की बात यह है कि इसे लगाने के लिए 168 मजदूर और 65 मिस्त्रियों को लगाया गया! कुल मजदूरी ₹1,06,984। लगता है, या तो ये मजदूर माइक्रोब्रश से रंग कर रहे थे या दीवारें इंडिया गेट जितनी बड़ी थीं।
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20 लीटर पेंट = 275 मजदूर + 150 मिस्त्री = ₹2.3 लाख!
उच्चतर माध्यमिक विद्यालय निपनिया में 20 लीटर पेंट में खर्च हुआ ₹2.3 लाख। खिड़कियों और दरवाजों की रंगाई भी इसी में समा गई। शायद हर दरवाजे पर पिकासो की पेंटिंग बनाई गई हो।
बिल का बिलौटा: सोशल मीडिया पर हुआ खुलासा
दोनों स्कूलों में एक ही ठेकेदार, सुधाकर कंस्ट्रक्शन, और एक ही तारीख – 5 मई 2025। सोशल मीडिया पर वायरल बिल ने जैसे ही धूम मचाई, कलेक्टर डॉ. केदार सिंह हरकत में आ गए। जिला शिक्षा अधिकारी फूल सिंह मारपाची को नोटिस भेजा गया। प्राचार्य सुग्रीव शुक्ला मौन व्रत में चले गए।
कलेक्टर बोले – “अब पूरा रंग उतरेगा”
कलेक्टर ने आदेश दिया कि सभी स्कूलों की रंगाई और मरम्मत के खर्चों की जांच होगी। जिन्होंने साइन किए हैं, उनसे पैसा वसूल किया जाएगा। और हां, दोषियों पर वैधानिक कार्रवाई भी होगी – मतलब ‘रंग’ के साथ ‘रंगबाज़ी’ भी खत्म।
सरकारी रंगाई की गणित: 1 लीटर = ₹12,000 का खर्च!
अगर आप सोच रहे हैं कि पेंट महंगा है, तो नहीं जनाब – ये तो “घोटाला ब्रांड” पेंट है, जिसकी कीमत में सरकार की पूरी इज्ज़त लिपी हुई है। शायद इस पेंट से भ्रष्टाचार भी ‘वॉटरप्रूफ’ हो जाता है।
दीवारें नहीं, सिस्टम को रंगा गया है!
यह मामला सिर्फ रंगाई का नहीं, बल्कि ‘सिस्टम में जमा काई’ का आईना है। सवाल यह नहीं कि पेंट कितना लगा – सवाल यह है कि पैसा कहां और किसके चेहरे पर लगा है।
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